नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रसिद्ध वैक्सीन वैज्ञानिक और आईआईटीयन डॉ. आकाश यादव को पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में मिली सजा के क्रियान्वयन पर अपील के निपटारे तक रोक जारी रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने माना कि वैज्ञानिक की सजा पर रोक लगाना जनस्वास्थ्य और राष्ट्रीय हित के लिहाज से उचित है।
वैज्ञानिक के तर्कों को माना जायज़
न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की एकल पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान डॉ. यादव ने कहा कि वे जैव प्रौद्योगिकी में आईआईटी खड़गपुर से पीएचडी धारक हैं और भारतीय इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड में वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में पिछले तीन वर्षों से वैक्सीन अनुसंधान और विकास में सक्रिय हैं। उन्होंने तर्क दिया कि अगर उन्हें सजा भुगतनी पड़ी तो इससे वैक्सीन रिसर्च प्रभावित होगा जो देश के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
ट्रायल कोर्ट का फैसला
रुद्रपुर के ट्रायल कोर्ट ने डॉ. आकाश यादव को दहेज हत्या और अन्य आरोपों से बरी कर दिया था, लेकिन पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराते हुए सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ डॉ. यादव ने हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।
पूर्व में हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान उन्हें जमानत दे दी थी और सजा के क्रियान्वयन पर रोक लगाई थी। अब कोर्ट ने उनकी दोषसिद्धि पर भी स्थगन का आदेश जारी करते हुए कहा कि जब तक अपील का अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक सजा लागू नहीं होगी।
पत्नी के सुसाइड नोट का हवाला
सरकारी पक्ष ने बताया कि डॉ. यादव की पत्नी पंतनगर में कार्यरत थीं और वहीं उनकी मौत हुई थी, जबकि उस समय यादव हैदराबाद में थे। हालांकि मृतका ने अपने सुसाइड नोट में पति को ही अपनी मौत का जिम्मेदार ठहराया था।
नवजोत सिंह सिद्धू केस का दिया गया उदाहरण
डॉ. यादव के पक्ष में नवजोत सिंह सिद्धू बनाम पंजाब राज्य मामले का हवाला दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने दुर्लभ मामलों में दोषसिद्धि पर स्थगन को वैध माना था। सिद्धू मामले में भी बाद में दोषसिद्धि के बावजूद राहत दी गई थी।