📍 देहरादून/नई दिल्ली |
उत्तराखंड कांग्रेस में जल्द ही एक बड़ा संगठनात्मक फेरबदल हो सकता है। पार्टी के शीर्ष सूत्रों के मुताबिक, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल का नाम एक बार फिर चर्चा में है और उन्हें दोबारा प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। यह संकेत 5 जून 2025 को नई दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व और उत्तराखंड के वरिष्ठ नेताओं के बीच हुई एक महत्वपूर्ण बैठक के बाद सामने आया है।
दिल्ली में हुई रणनीतिक बैठक ने बढ़ाई अटकलें
5 जून को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की अध्यक्षता में हुई बैठक में उत्तराखंड कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं—हरीश रावत, करन माहरा, यशपाल आर्य, प्रीतम सिंह और हरक सिंह रावत—की मौजूदगी रही। इस अहम बैठक में कांग्रेस की उत्तराखंड प्रभारी कुमारी सैलजा भी शामिल थीं।
बैठक के मुख्य एजेंडे थे:
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आगामी पंचायत चुनावों की रणनीति
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2027 विधानसभा चुनाव की प्रारंभिक तैयारियाँ
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राज्य की वर्तमान राजनीतिक स्थिति और जनता के प्रमुख मुद्दे
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संगठनात्मक ढांचे में संभावित बदलाव
इस बैठक के बाद, उत्तराखंड कांग्रेस में नेतृत्व बदलाव की चर्चाएं तेज़ हो गई हैं, और गणेश गोदियाल का नाम एक बार फिर से प्रमुखता से उभरकर सामने आया है।
गणेश गोदियाल: अनुभव और स्वच्छ छवि का संतुलन
गणेश गोदियाल को इससे पहले 2021 में प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। उनके कार्यकाल में संगठन ने कई जनहित मुद्दों को ज़ोरदार ढंग से उठाया, जिसमें बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और आउटसोर्स कर्मियों की बहाली जैसे विषय शामिल रहे। उन्होंने ज़मीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया और आंतरिक समन्वय को बढ़ावा देने की कोशिश की।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि:
“गोदियाल का नेतृत्व संतुलित रहा है — न बहुत आक्रामक, न निष्क्रिय। पार्टी को ऐसे ही नेता की ज़रूरत है जो सभी गुटों में समन्वय बनाकर संगठन को मज़बूती दे सके।”
उनकी साफ-सुथरी छवि, सामाजिक पृष्ठभूमि से जुड़ाव और कार्यकर्ताओं में स्वीकार्यता उन्हें इस पद के लिए एक उपयुक्त उम्मीदवार बनाती है — भले ही पार्टी ने अभी तक कोई औपचारिक घोषणा नहीं की है।
राजनीतिक संदर्भ: क्यों हो रहा है बदलाव ज़रूरी?
2025 के नगर निकाय चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। भाजपा ने 11 में से 10 नगर निगमों पर कब्जा किया, जबकि कांग्रेस शहरी निकायों में पूरी तरह विफल रही। इसके चलते संगठन के अंदर विवाद और असंतोष की स्थिति बनी रही। कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के अंदर समन्वय की कमी और नेतृत्व में ढीलापन को लेकर सवाल उठाए।
ऐसे में राहुल गांधी ने बैठक में स्पष्ट रूप से कहा:
“पार्टी नेताओं को जनता के मुद्दों पर एकजुट होकर काम करना होगा। विधानसभा के अंदर और बाहर दोनों जगह कांग्रेस की मौजूदगी मज़बूत होनी चाहिए।”
वही कुछ समय पूर्व भी राहुल गांधी ने कुछ ऐसा ही इशारा करते हुए स्पष्ट तौर पर कहा था रेस के घोड़े और बारात के घोड़े को अलग करना होगा.
उन्होंने बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण जैसे स्थानीय मुद्दों पर कांग्रेस को आक्रामक रुख अपनाने की सलाह दी — विशेषकर चारधाम परियोजना और हिमालयी क्षेत्र में विकास से जुड़े विवादों को लेकर।
क्या गणेश गोदियाल बना सकते हैं संगठन में नई जान?
सूत्र बताते हैं कि पार्टी हाईकमान नए चेहरों के बजाय फिर से अनुभवी और संतुलित नेतृत्व पर भरोसा जता सकता है। ऐसे में गोदियाल की वापसी एक रणनीतिक पुनर्संरचना मानी जाएगी। खास बात यह है कि वह न तो किसी विशेष गुट से जुड़े माने जाते हैं, न ही उनके नाम पर संगठन में खुला विरोध है।
उनकी पिछली भूमिका में:
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उन्होंने जमीनी कार्यकर्ताओं के बीच संवाद बढ़ाया।
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युवाओं और ग्रामीण मतदाताओं के बीच कांग्रेस की पकड़ मज़बूत करने की दिशा में काम किया।
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सरकार के खिलाफ मुद्दों पर संयमित लेकिन प्रभावी ढंग से विपक्ष की भूमिका निभाई।
नज़र अब हाईकमान के फैसले पर
फिलहाल कांग्रेस हाईकमान की ओर से किसी प्रकार की आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। लेकिन दिल्ली बैठक के बाद राजनीतिक हलकों में यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि उत्तराखंड में बदलाव अब केवल समय की बात है।
अगर गणेश गोदियाल को दोबारा प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है, तो यह एक स्पष्ट संदेश होगा कि पार्टी अनुभव, स्थिरता और समन्वय को प्राथमिकता दे रही है — खासतौर पर 2027 के विधानसभा चुनाव और उससे पहले पंचायत चुनावों की रणनीति के लिहाज़ से।