विश्व की सात प्रमुख लोकतांत्रिक और आर्थिक शक्तियों वाले समूह G7 ने इजरायल के पक्ष में एक मजबूत और स्पष्ट समर्थन का ऐलान किया है। हाल ही में जारी ज्वाइंट स्टेटमेंट में G7 नेताओं ने कहा है कि “इजरायल को आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है” और वे “मिडिल ईस्ट में शांति और स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब इजरायल और ईरान के बीच युद्ध जैसी स्थिति बन चुकी है। इजरायल ने बीते शुक्रवार को ईरान पर सैन्य हमले शुरू किए थे, जिसके जवाब में ईरान ने सैकड़ों बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलें इजरायल पर दागीं। कुछ मिसाइलें इजरायल की रक्षा प्रणाली को पार कर सैन्य और नागरिक इलाकों में गिरीं, जिससे पश्चिम एशिया में तनाव चरम पर पहुंच गया है।
ईरान पर G7 का तीखा रुख
G7 नेताओं ने अपने बयान में ईरान को “आतंकवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता का मुख्य स्रोत” करार देते हुए साफ किया है कि वे किसी भी हालात में ईरान को परमाणु हथियार हासिल नहीं करने देंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वे ऐसा प्रस्ताव चाहते हैं जिससे मिडिल ईस्ट में युद्ध का विस्तार न हो और गाजा सहित पूरे क्षेत्र में युद्धविराम हो।
बयान में नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोपरि बताया गया है और यह भी स्पष्ट किया गया है कि अगर ईरान ने परमाणु हथियार की दिशा में कोई भी कदम बढ़ाया, तो उस पर कड़ी अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई की जाएगी। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस पहले ही इसको लेकर ईरान को चेतावनी दे चुके हैं।
नेतन्याहू को मिला समर्थन, ईरान पर गहराया दबाव
G7 का यह संयुक्त बयान इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की आक्रामक रणनीति को और बल देता है। नेतन्याहू अब ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को निशाना बनाने की बात कर रहे हैं। G7 देशों की यह एकजुटता न सिर्फ इजरायल को अंतरराष्ट्रीय मंच पर खुला समर्थन देती है, बल्कि ईरान को वैश्विक स्तर पर घेरने की तैयारी भी दिखा रही है।
भारत के लिए बढ़ी चुनौती
G7 का यह कड़ा रुख भारत के लिए एक मुश्किल कूटनीतिक परिस्थिति पैदा कर रहा है। भारत के ईरान और इजरायल दोनों के साथ मजबूत रणनीतिक और आर्थिक रिश्ते हैं।
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इजरायल, भारत की रक्षा क्षमता को लगातार मजबूत कर रहा है।
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वहीं, ईरान, भारत को पाकिस्तान को दरकिनार कर सेंट्रल एशिया से जोड़ने वाला एक अहम रास्ता उपलब्ध कराता है।