महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के अकोले तालुका स्थित जांभले गांव के ठाकरवाड़ी इलाके में एक आदिवासी महिला ने जंगल के बीच बच्चे को जन्म दिया। यह घटना 29 मई की है, जो यह सवाल दोबारा खड़ा करती है कि आज़ादी के 78 साल बाद भी देश के कई आदिवासी और ग्रामीण इलाकों में बुनियादी सुविधाएं क्यों नहीं पहुंच पाई हैं।
सड़क न होने से अस्पताल नहीं पहुंच सकी गर्भवती
29 मई को प्रतीक्षा माधे नामक गर्भवती महिला को अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हुई। उनके पति दशरथ माधे तुरंत गांव के सरपंच राजेंद्र गावंडे के पास मदद के लिए पहुंचे और भावुक होकर बोले, “साहब, सड़क नहीं है… अगर गाड़ी नहीं मिली तो मेरी पत्नी की जान को खतरा हो सकता है।” सरपंच ने तुरंत अपनी कार लेकर महिला को अस्पताल पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन हाल ही में हुई बारिश के कारण रास्ता पूरी तरह कीचड़ से भर चुका था। बीच रास्ते में कार कीचड़ में फंस गई और इसी दौरान प्रतीक्षा की पीड़ा बढ़ गई।
ग्रामीण महिलाओं ने निभाई दाई की भूमिका
किसी अस्पताल या डॉक्टर की मदद के बिना प्रतीक्षा को जंगल में ही प्रसव हुआ। उनकी सास, मां और गांव की एक महिला ने मिलकर कठिन परिस्थितियों में बच्चे का सुरक्षित जन्म करवाया। न डॉक्टर, न दवाई, न उपकरण — सिर्फ हिम्मत और अनुभव के बल पर ग्रामीण महिलाओं ने यह करिश्मा कर दिखाया। यह ग्रामीण महिलाओं की साहस और समझदारी का जीवंत उदाहरण है।
प्रसव के बाद भी जारी रहा संघर्ष
प्रसव के बाद गांव वालों ने कीचड़ में फंसी कार को किसी तरह बाहर निकाला। इस बीच सरपंच गावंडे ने स्वास्थ्य केंद्र के डॉक्टर डॉ. सोनावणे से लगातार संपर्क बनाए रखा और एम्बुलेंस मंगवाई। भारी मुश्किलों के बीच मां और नवजात को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाया गया। डॉक्टरों ने पुष्टि की कि दोनों की हालत अब स्थिर और सुरक्षित है।
अधूरी सड़क बनी ग्रामीणों की सबसे बड़ी समस्या
यह घटना ठाकरवाड़ी की जमीनी हकीकत को उजागर करती है। वर्ष 2015 में गांव तक दो किलोमीटर लंबी सड़क बनाने का कार्य शुरू किया गया था, लेकिन बजट की कमी और वन विभाग की मंजूरी में देरी के कारण काम अधूरा रह गया। नतीजतन, बरसात के मौसम में यह इलाका कीचड़ भरे रास्तों में तब्दील हो जाता है और लोगों को अस्पताल तक पहुंचने के लिए जान जोखिम में डालनी पड़ती है।