देहरादून में 150 साल पुरानी एक दरगाह को ध्वस्त किए जाने का मामला अब देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से पूछा है कि यह कार्रवाई क्यों और कैसे की गई। यह दरगाह, जो 1982 से वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत थी, 25-26 अप्रैल, 2025 को बिना पूर्व सूचना के ढहा दी गई। इस घटना ने स्थानीय समुदाय में आक्रोश पैदा किया है और धार्मिक संपत्तियों के संरक्षण पर सवाल उठाए हैं।
150 साल पुरानी दरगाह का ध्वस्तीकरण
देहरादून के एक ऐतिहासिक इलाके में स्थित यह दरगाह धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी। वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड के अनुसार, इसे 1982 में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज किया गया था, जिसके तहत इसे कानूनी संरक्षण प्राप्त था। लेकिन अप्रैल 2025 की रात को स्थानीय प्रशासन ने इसे पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि न तो दरगाह के प्रबंधकों को कोई नोटिस दिया गया और न ही कोई कानूनी प्रक्रिया अपनाई गई।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर एक अवमानना याचिका दायर की गई। याचिका में दावा किया गया कि यह कार्रवाई वक्फ संशोधन विधेयक पर कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में कहा, “वक्फ संपत्तियों को संरक्षित करने के स्पष्ट दिशा-निर्देश हैं। इस तरह की एकतरफा कार्रवाई न केवल गैरकानूनी है, बल्कि धार्मिक भावनाओं को भी आहत करती है।” सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा कि इस ध्वस्तीकरण का आधार क्या था और क्या इसके लिए उचित प्रक्रिया का पालन किया गया।
वक्फ संशोधन और कानूनी बहस
यह मामला उस समय सामने आया है, जब वक्फ संशोधन विधेयक पर देशभर में बहस चल रही है। यह विधेयक वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और संरक्षण से जुड़े नियमों में बदलाव का प्रस्ताव करता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस विधेयक पर विचाराधीन होने के दौरान ऐसी संपत्तियों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई न करने का निर्देश दिया था। दरगाह का ध्वस्तीकरण इन निर्देशों के खिलाफ माना जा रहा है, जिसने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।
स्थानीय समुदाय में नाराजगी
दरगाह के ध्वस्त होने से देहरादून में खासकर मुस्लिम समुदाय में गहरी नाराजगी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह दरगाह न केवल पूजा का स्थान थी, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी थी। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “यह हमारी साझा संस्कृति का हिस्सा थी। इसे बिना बताए तोड़ना गलत है।” कुछ सामाजिक संगठनों ने विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है, और इस मुद्दे ने सोशल मीडिया पर भी बहस छेड़ दी है।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार को जवाब दाखिल करने का समय दिया है। सरकार को यह बताना होगा कि दरगाह को तोड़ने का निर्णय किस आधार पर लिया गया। अगर सरकार अपने कदम को उचित ठहराने में असफल रही, तो उसे कोर्ट की अवमानना का सामना करना पड़ सकता है। इस मामले ने वक्फ संपत्तियों के संरक्षण और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर व्यापक बहस को जन्म दिया है।
क्या यह मामला धार्मिक और कानूनी संतुलन की दिशा में नया मोड़ लेगा? यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।