Saturday, July 5, 2025
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उत्तराखंड स्कूल मर्जर योजना – गांवों में शराब की दुकानें खोली जा रही हैं स्कूल बंद किए जा रहे हैं : यशपाल आर्या

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देहरादून, 5 जुलाई 2025: उत्तराखंड सरकार की सरकारी स्कूलों को मर्ज करने या बंद करने की योजना ने शिक्षा क्षेत्र में तीखा विवाद खड़ा कर दिया है। सरकार का दावा है कि कम छात्र संख्या वाले छोटे स्कूलों को पास के बड़े स्कूलों में मर्ज करने से ‘शैक्षिक गुणवत्ता’ में सुधार होगा और संसाधनों का समुचित उपयोग होगा। हालांकि, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने इस नीति को शिक्षा विरोधी और संवैधानिक अधिकारों का हनन बताते हुए कड़ा विरोध शुरू कर दिया है।

संवैधानिक उल्लंघन का आरोप

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य का कहना है कि यह नीति भारत के संविधान के अनुच्छेद 21A, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act, 2009), और नीति-निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 46 की मूल भावना के खिलाफ है। अनुच्छेद 21A के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के प्रत्येक बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है, और RTE Act की धारा 6 में स्पष्ट है कि हर बस्ती के पास स्कूल होना राज्य की जिम्मेदारी है। यशपाल आर्य ने X पर (@IamYashpalArya) इस नीति को संविधान का उल्लंघन बताते हुए कहा, “ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों का बंद होना शिक्षा को गांवों से दूर ले जाएगा। यह न केवल शिक्षा विरोधी है, बल्कि सामाजिक न्याय की अवहेलना भी है।”

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और मर्जर का विवाद

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 में स्कूल क्लस्टर की अवधारणा को शिक्षा की गुणवत्ता और संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए प्रस्तावित किया गया था, लेकिन इसमें स्कूलों को मर्ज करने या बंद करने का कोई प्रावधान नहीं है। यशपाल आर्य ने तर्क दिया कि उत्तराखंड सरकार की नीति NEP 2020 के दिशानिर्देशों से परे जाकर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच को सीमित कर सकती है। खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में, जहां स्कूल पहले ही दूर-दूर हैं, बच्चों को लंबी दूरी तय करनी पड़ सकती है, जो सर्दियों में विशेष रूप से कठिन होगा।

ग्रामीण क्षेत्रों पर प्रभाव

यशपाल आर्य ने चेतावनी दी कि जिन स्कूलों को “छोटा” कहकर बंद किया जा रहा है, वे ग्रामीण बच्चों के लिए आत्मविश्वास, सामुदायिक जुड़ाव, और उनकी बुनियादी पहचान का केंद्र हैं। स्कूलों के बंद होने से न केवल बच्चों की शिक्षा प्रभावित होगी, बल्कि शिक्षकों, प्रधानाचार्यों, और शिक्षणेत्तर कर्मियों के पद भी खत्म हो सकते हैं। उन्होंने X पर यह भी उल्लेख किया कि “ग्रामीण क्षेत्रों में शराब की दुकानों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन स्कूलों की संख्या घटाना न्यायसंगत नहीं है।”

निजीकरण और शिक्षा की लागत

यशपाल आर्य ने आरोप लगाया कि स्कूल मर्जर की आड़ में सरकार शिक्षा के निजीकरण को बढ़ावा दे रही है। प्राथमिक स्कूलों के बंद होने से ग्रामीण और गरीब परिवारों के बच्चे निजी स्कूलों की ओर मजबूर हो सकते हैं, जहां ऊंची फीस शिक्षा को और महंगा बना देगी। उन्होंने कहा, “यह एकलव्य का अंगूठा काटने जैसा है। प्राथमिक स्कूल बंद कर और निजी स्कूलों की फीस बढ़ाकर गरीब बच्चों को शिक्षा से वंचित किया जा रहा है।”

विरोध और मांगें

यशपाल आर्य के नेतृत्व में शिक्षक संगठनों और स्थानीय समुदायों ने इस नीति के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया है। देहरादून और अन्य जिलों में ज्ञापन सौंपे गए हैं, और लखनऊ हाईकोर्ट में इस नीति के खिलाफ याचिका दायर होने की खबरें हैं। यशपाल आर्य ने सरकार से निम्नलिखित मांगें की हैं:

  • स्कूल मर्जर नीति को तत्काल प्रभाव से रोका जाए।
  • हर गांव में संविधान और RTE Act के अनुसार स्थानीय स्कूल की गारंटी दी जाए।
  • शिक्षा में निजीकरण और केंद्रीकरण के बजाय जन-भागीदारी और विकेंद्रीकरण को बढ़ावा दिया जाए।

सरकार का पक्ष

शिक्षा विभाग का कहना है कि कम छात्रों वाले स्कूलों में संसाधनों का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। मर्जर से शिक्षकों और बुनियादी ढांचे का बेहतर प्रबंधन होगा, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा। हालांकि, सरकार ने अभी तक मर्ज होने वाले स्कूलों की अंतिम सूची या योजना का विस्तृत ब्योरा सार्वजनिक नहीं किया है।

आगे की राह

यशपाल आर्य और विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को इस नीति को लागू करने से पहले शिक्षा के सभी हितधारकों—शिक्षकों, अभिभावकों, और स्थानीय समुदायों—से गहन विचार-विमर्श करना चाहिए। उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों, खासकर पहाड़ी क्षेत्रों की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए नीति को लागू करने की आवश्यकता है।

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