अमेरिका में बसने का सपना लेकर मकान, दुकान और जमीन बेचकर निकले हरियाणा के युवाओं के सपने उस समय चकनाचूर हो गए जब अमेरिकी प्रशासन ने उन्हें हथकड़ियां लगाकर डिपोर्ट कर दिया। इन युवकों ने न केवल अपनी पैतृक संपत्ति गंवाई, बल्कि विदेश में मिली बेइज्जती ने उनके आत्मसम्मान को भी गहरी चोट पहुंचाई।

शनिवार को अमेरिका से लौटे 54 भारतीय युवकों में 16 करनाल और 14 कैथल जिले के थे। ये सभी युवक रविवार को मामूली औपचारिकताओं के बाद दिल्ली एयरपोर्ट से अपने परिवारों के सुपुर्द किए गए।
सपनों की कीमत: बेची दुकान और जमीन
करनाल के रजत पाल (20 वर्ष) ने बताया कि उनके पिता की संगोही में मिठाई की दुकान थी। परिवार की उम्मीदों के साथ वह 26 मई को अमेरिका के लिए रवाना हुए। एजेंट ने “गारंटी” के साथ अमेरिका में प्रवेश दिलाने का दावा किया था। इसके लिए उनके भाई विशाल ने एक प्लॉट और दुकान बेचकर करीब 45 लाख रुपये जुटाए और 15 लाख रुपये अतिरिक्त शुल्क भी चुकाया।
जंगलों में भूख, ठगी और मौत का डर
रजत ने बताया कि वे करीब 12–13 लोगों के समूह में पनामा के खतरनाक जंगलों से गुजरे। वहां भोजन बेहद सीमित था और भूख-प्यास से सभी बेहाल थे। उन्हें उम्मीद थी कि अमेरिका पहुंचने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा, लेकिन वहां पहुंचते ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया। दो हफ्ते जेल में रहने के बाद 20 अक्टूबर को डिपोर्ट करने की सूचना दे दी गई।
रजत ने कहा, “मैं नहीं चाहता कि कोई भी इस रास्ते से अमेरिका जाने की कोशिश करे। यह रास्ता सिर्फ बर्बादी की ओर ले जाता है।”
कर्ज में डूबे परिवार, जेल में बीते महीने
रजत के भाई विशाल ने बताया कि उन्होंने रजत को अमेरिका भेजने के लिए संपत्ति भी बेची और कर्ज भी लिया। वहीं, तारागढ़ गांव के नरेश कार ने कहा कि उन्होंने 57 लाख रुपये खर्च किए और 14 महीने अमेरिकी जेल में रहना पड़ा। उन्होंने बताया कि एजेंटों ने पहले तय रकम बताई ही नहीं, बल्कि हर बॉर्डर पार करने पर और पैसे मांगते रहे।
हथकड़ियों में जकड़े सपने
अंबाला के जगोली गांव के हरजिंदर सिंह ने कहा कि अमेरिका पहुंचने के बाद उन्होंने कुकिंग सीखी और शेफ की नौकरी कर ली थी, लेकिन प्रशासन ने उन्हें पकड़ लिया। उन्होंने कहा, “हमें 25 घंटे तक हथकड़ियों में रखा गया, जैसे हम अपराधी हों। हमारे हाथ-पैर सूज गए थे। हमारे साथ जानवरों जैसा व्यवहार हुआ।”





