दिल्ली, 28 अगस्त 2025 – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि “इस्लाम भारत में पहले दिन से है और आगे भी रहेगा। जो लोग यह सोचते हैं कि इस्लाम मिट जाएगा, वे हिंदू विचार से प्रेरित नहीं हैं।”
दिल्ली के विज्ञान भवन में आरएसएस के शताब्दी समारोह के तीसरे दिन उन्होंने यह बात कही। भागवत ने ज़ोर देकर कहा कि भारत की संस्कृति सबको जोड़ने वाली है और किसी भी धर्म को समाप्त करने की बात हिंदू दर्शन का हिस्सा नहीं है।
इस्लाम पर क्या कहा भागवत ने?
मोहन भागवत ने कहा:
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“इस्लाम जब भारत में आया, तब से यह यहां मौजूद है और आगे भी रहेगा। इसे नकारा नहीं जा सकता।”
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“जो लोग मानते हैं कि इस्लाम यहां से ख़त्म हो जाएगा, वे हिंदू दृष्टिकोण से प्रेरित नहीं हैं।”
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“जब तक दोनों तरफ विश्वास नहीं होगा, संघर्ष ख़त्म नहीं होगा। पहले यह स्वीकार करना ज़रूरी है कि हम सब एक हैं।”
मुस्लिम समाज की प्रतिक्रिया
उनके इस बयान का स्वागत कई मुस्लिम नेताओं ने किया।
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महाराष्ट्र अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष प्यारे खान ने कहा, “यह बयान स्पष्ट करता है कि भारत की एकता और अखंडता को कोई नहीं तोड़ सकता।”
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अजमेर दरगाह के दीवान सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने कहा, “यह सामाजिक सौहार्द और भाईचारे को मज़बूत करने की दिशा में अहम कदम है।”

हालाँकि कुछ आलोचक यह भी कहते हैं कि संघ के विचार और ज़मीनी राजनीति में फर्क दिखाई देता है।
1. धार्मिक असर
भागवत के इस बयान से मुस्लिम समाज में यह संदेश गया कि आरएसएस का शीर्ष नेतृत्व इस्लाम को भारत के ताने-बाने का हिस्सा मानता है।
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यह बयान धार्मिक असुरक्षा की भावना को कम कर सकता है, खासकर उन लोगों में जो मानते हैं कि उनकी पहचान पर लगातार सवाल उठाए जाते हैं।
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धार्मिक विद्वानों का मानना है कि अगर ऐसे विचार लगातार और व्यवहारिक रूप से सामने आते हैं तो इससे हिंदू-मुस्लिम संवाद और विश्वास बहाली की दिशा में बड़ा असर पड़ेगा।
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यह भी संकेत मिलता है कि हिंदू दर्शन और भारतीय संस्कृति बहु-धार्मिक और समावेशी है।
2. राजनीतिक असर
राजनीतिक दृष्टि से यह बयान कई मायनों में अहम है।
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चुनावी साल में इसे बीजेपी और आरएसएस की नरम छवि दिखाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
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विश्लेषकों का कहना है कि यह वक्तव्य उन इलाक़ों और वर्गों को संदेश देने की कोशिश है जहाँ धार्मिक ध्रुवीकरण की आलोचना बढ़ रही है।
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इससे यह भी संकेत जाता है कि संघ अपने 100 साल पूरे होने के अवसर पर समावेशी और राष्ट्रवादी छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेश करना चाहता है।
3. विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्षी दल इस बयान को लेकर सतर्क रुख़ अपना रहे हैं।
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कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों का कहना है कि संघ का शीर्ष नेतृत्व और उसकी ज़मीनी राजनीति में बड़ा अंतर है।
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विपक्ष का आरोप है कि, “एक ओर मोहन भागवत जैसे नेता समावेशी बातें करते हैं, लेकिन दूसरी ओर उनके कार्यकर्ता और सहयोगी संगठनों की गतिविधियाँ अक्सर नफ़रत और ध्रुवीकरण को बढ़ावा देती हैं।”
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कुछ विपक्षी नेताओं ने इसे “राजनीतिक बयान” कहा और दावा किया कि यह संघ की छवि को सुधारने की रणनीति है।
मोहन भागवत का ताज़ा बयान एक ओर मुस्लिम समाज को आश्वस्त करता है कि इस्लाम भारत की पहचान का स्थायी हिस्सा है, वहीं दूसरी ओर यह संघ की “समावेशी छवि” को मज़बूत करने का भी प्रयास है।
लेकिन आलोचकों का मानना है कि केवल भाषण देने से ज़मीनी हकीकत नहीं बदलती।
क्या यह बयान वास्तव में समाज में भरोसा और सौहार्द को बढ़ाएगा या फिर यह सिर्फ़ राजनीतिक संदेश बनकर रह जाएगा – यह आने वाले समय में साफ़ होगा।