“वोट सिर्फ स्याही नहीं, भविष्य की मुहर है!” — ये शब्द हैं ग्राम सभा बरा के युवा कृष्णा गंगवार उर्फ कृतज्ञ के, जिन्होंने पहली बार लोकतंत्र के इस महापर्व में हिस्सा लेकर न केवल अपने अधिकार का उपयोग किया, बल्कि एक नई सोच और उम्मीद की मिसाल भी पेश की।
उत्तराखंड में चल रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के बीच कृष्णा की ये भागीदारी इसलिए भी खास बन गई क्योंकि उनका पहला वोट मां के नाम था – निवर्तमान जिला पंचायत अध्यक्ष रेनू गंगवार के लिए।
मां के लिए पहला वोट, पूरे क्षेत्र के लिए उम्मीद
कृष्णा ने मतदान केंद्र पहुंचकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया और उसके बाद हाथ जोड़कर ईश्वर से मां की जीत की प्रार्थना की। उन्होंने कहा –
“यह सिर्फ मेरा पहला वोट नहीं था, यह मेरे कर्तव्य की शुरुआत थी। मां ने क्षेत्र की हर बेटी, बहन और मां की आवाज़ बनकर काम किया है। मैं चाहता हूं कि उन्हें एक बार फिर सेवा का अवसर मिले।”
रेनू गंगवार को लेकर कृष्णा ने बताया कि उन्होंने हमेशा विकास को प्राथमिकता दी – चाहे महिला सशक्तिकरण हो, शिक्षा का अधिकार हो या गांव में मूलभूत सुविधाएं। हर घर तक उनकी पहुँच रही है और आज वही भरोसा दोहराने का दिन है।
युवा सोच की नई मिसाल
जहां आज का युवा अक्सर राजनीति से दूरी बनाता है, वहीं कृष्णा जैसे युवा लोकतंत्र को मजबूत करने का काम कर रहे हैं। उनका मानना है कि –
“मतदान करना सिर्फ अधिकार नहीं, एक जिम्मेदारी है। अगर हम चुप रहेंगे, तो गलत लोग हमारी चुप्पी पर राज करेंगे।”
उन्होंने कहा कि धर्म और जाति के नाम पर वोट देना बंद होना चाहिए। असली सवाल विकास का होना चाहिए –
“नेताओं से पूछो – स्कूलों, सड़कों, अस्पतालों और बिजली के लिए आपने क्या किया? सिर्फ जाति और नारे पर वोट देना देश के साथ धोखा है।”
एक बेटे की आस्था और एक मतदाता की समझदारी
कृष्णा का पहला वोट बताता है कि लोकतंत्र की असली ताकत अब नई पीढ़ी के हाथ में है – जो सिर्फ परंपरा नहीं, परिवर्तन चाहती है। मां के समर्थन में दिया गया ये वोट एक बेटे की श्रद्धा और एक ज़िम्मेदार नागरिक की जागरूकता का सुंदर संगम था।