दिल्ली हाई कोर्ट ने पतंजलि आयुर्वेद को बड़ा झटका देते हुए डाबर इंडिया के च्यवनप्राश के खिलाफ टीवी पर कोई भी नकारात्मक विज्ञापन दिखाने से रोक लगा दी है। कोर्ट का यह फैसला डाबर द्वारा दायर की गई याचिका पर आया है, जिसमें उन्होंने पतंजलि पर उनके प्रोडक्ट को बदनाम करने का आरोप लगाया था।
कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने डाबर की दलीलों को मानते हुए पतंजलि को ऐसे भ्रामक विज्ञापनों पर तत्काल रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। यह मामला 24 दिसंबर से कोर्ट में चल रहा था, जिसमें पतंजलि को नोटिस भी भेजा गया था। डाबर ने कोर्ट से अंतरिम राहत की मांग की थी, जिसे अब मंजूरी मिल गई है।
डाबर के आरोप
डाबर का कहना है कि कोर्ट का नोटिस मिलने के बावजूद पतंजलि ने बीते कुछ हफ्तों में 6,182 बार ऐसे विज्ञापन प्रसारित किए, जो उनके ब्रांड को बदनाम करते हैं। डाबर ने यह भी आरोप लगाया कि पतंजलि अपने च्यवनप्राश में 51 से ज्यादा जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल का दावा करता है, जबकि वास्तव में उसमें सिर्फ 47 ही हैं, जिससे उपभोक्ताओं को गुमराह किया जा रहा है।
डाबर ने कोर्ट में कहा, “पतंजलि हमें साधारण बता रही है, जबकि हम मार्केट लीडर हैं।” च्यवनप्राश बाजार में डाबर की हिस्सेदारी 61.6% है, यानी अधिकांश लोग डाबर का ही च्यवनप्राश खरीदते हैं।
पतंजलि पर गंभीर आरोप
डाबर ने यह भी कहा कि पतंजलि अपने विज्ञापनों में दावा करता है कि ‘असली च्यवनप्राश वही बना सकता है, जिसे आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान हो।’ यह दर्शाता है कि डाबर का प्रोडक्ट घटिया है। इसके अलावा, डाबर ने यह आरोप भी लगाया कि पतंजलि के प्रोडक्ट में पारा (Mercury) मौजूद है, जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
अब कोर्ट के आदेश के बाद पतंजलि को अपने विज्ञापन रणनीति में बड़ा बदलाव करना होगा। मामले की अगली सुनवाई जल्द हो सकती है।